राजीव मिश्र
कोयला माफिया के खिलाफ मुखर आवाज। जीवन पर्यंत कालिख की कोठरी में रहने के बावजूद बेदाग। सिर्फ दो पायजामा, दो कुर्ता और दो बंडी। सर्दी के दिनों में एक शॉल (चादर)। इससे ज्यादा कुछ नहीं। सादगीपूर्ण जीवन जीने की मिशाल। राय दा के नाम से लोकप्रिय। सुसंस्कृत पर गरीब मजदूरों की जान। यही रही है कॉमरेड एके राय की पहचान। जी हां, यह सच है। एके राय के राय दा बनने की एक आदर्श कहानी है। इसमें त्याग, तपस्या, समर्पण और सैद्धांतिक राजनीति का समावेश है। इसी तप से आदर्श राजनीति का लंबा सफर तय कर राय दा सामाजिक क्षेत्र के एक राजनीतिक संत बन गए। सिंदरी में केमिकल इंजीनियर के रास्ते मार्क्सवादी विचारक बनकर उन्होंने राजनीतिक शुचिता की मिसाल कायम की। अपने काम की बदौलत गरीब मजदूरों के आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के द्योतक बने। कोयला मजदूरों का मानसिक, सामाजिक और शारीरिक शोषण रोकने के साथ ही उनके विकास लिए अथक प्रयास किया। धनबाद लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद और सिंदरी विधानसभा सीट का तीन बार प्रतिनिधित्व करने वाले राय दा ने 84 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। विचारों और सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करने वाले कॉमरेड राय के चले जाने से कोयलांचल ने अपना अभिभावक खोया तो हजारों मजदूरों ने अपना भाग्यविधाता।झारखंड के बड़े नेता, मार्क्सवादी चिंतक और धनबाद के पूर्व सांसद एके राय नहीं रहे। 21 जुलाई की सुबह 11.15 बजे सेंट्रल अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 13 दिन से सेंट्रल अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने विनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन के साथ काम किया। अलग झारखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय रहे। झारखंड आंदोलन के लिए उन्होंने शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर 1972 में झामुमो का गठन किया था। शिबू सोरेन से अलग होने के बाद उन्होंने मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई। अभी भी उनकी पार्टी से झारखंड विधानसभा में एक विधायक हैं अरूप चटर्जी।एके राय का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के राजशाही जिला अंतर्गत सपुरा गांव में 15 जून 1935 में हुआ था। वे केमिकल इंजीनियर बनकर धनबाद आए थे। बाद में कोयला मजदूरों की पीड़ा और शोषण से व्यथित होकर लाल झंडा थाम लिया और आंदोलनकारी बन गए। इंजीनियर का पेशा छोड़ सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय हो गए। नतीजा हुआ कि कोयलांचल के लोगों ने खूब सम्मान दिया। तीन-तीन बार सांसद और विधायक बनाया। झारखंड को अलग राज्य बनाने के लिए चले आंदोलन में भी उनका बड़ा योगदान था। मार्क्सवाद और मजदूर आंदोलन पर इनके लेख विदेशों में भी प्रकाशित हुए। एके राय की प्रमुख पुस्तकों में हिंदी में योजना और क्रांति, झारखंड और लालखंड, अंग्रेजी में बिरसा से लेनिन और नई दलित क्रांति के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके सामयिक आलेख भी प्रकाशित होते रहे। उनका लेखन झारखंड आंदोलन और राजनीति पर फोकस रहा।
जेल में रहते हुए जीता था लोकसभा का चुनाव
मजदूरों की राजनीति करने वाले कॉमरेड एक राय ने जेल में रहते हुए पहली लोकसभा का चुनाव जीता था। राय दा ने आपातकाल के विरोध में जेपी आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। विधानसभा से इस्तीफा दिया। जेल गए। देशभर में लहर के बावजूद 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ने से मना कर दिया। कहा, मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) से चुनाव लड़ेंगे। अंततः राय दा जनता पार्टी समर्थित मासस उम्मीदवार घोषित हुए। हजारीबाग जेल से ही नामांकन किया और जेल में रहते हुए ही पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते।
तीन बार विधायक और तीन बार सांसद रहे राय दा
कोलकाता विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद वे धनबाद जिले के सिंदरी स्थित पीडीआईएल में नौकरी करने आए थे। वहां ठेका मजदूरों की स्थिति से व्यथित होकर नौकरी छोड़ राजनीति में कूदे। माकपा के टिकट पर पहली बार वर्ष 1967 में सिंदरी से विधायक बने। वर्ष 1969 में दूसरी बार तथा वर्ष 1972 में तीसरी बार जनवादी संग्राम समिति के बैनर तले सिंदरी के विधायक चुने गए। माकपा से अलग होने के बाद राय दा ने मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का गठन किया और जेपी आंदोलन के दौरान विधानसभा से इस्तीफा देकर जेल गए।जेल से ही पहली बार 1977 में धनबाद के सांसद बने। फिर 1980 में दूसरी बार तथा 1989 में तीसरी बार सांसद चुने गए। धनबाद में प्रभावशाली मजदूर संगठन बिहार कोलियरी कामगार यूनियन की स्थापना की। झारखंड आंदोलन को मुकाम तक पहुंचानेवाले राजनीतिक संगठन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सूत्रधार रहे।
पूर्व सांसद को मिलने वाली पेंशन का किया था विरोध
कॉमरेड राय ने पूर्व सांसद को मिलने वाली पेंशन सहित अन्य सरकारी सुविधा कभी नहीं ली। राय दा नौवीं लोकसभा (1989-91) के इकलौते सांसद थे, जिन्होंने लोकसभा में पूर्व सांसदों को पेंशन दिये जाने का विरोध किया था। 12 मार्च 1991 को संसद में लाये गये इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए उन्होंने मजबूत तर्क दिये थे। कहा था, ‘मैं पेंशन के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन पेंशन सदन के उन सदस्यों को मिलना चाहिए जो राजनीति से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। पेंशन का अर्थ है पेंशन, कोई सांत्वना पुरस्कार नहीं। यह बेरोजगारों को मिलने वाला कोई सरकारी लाभ भी नहीं है। यह संविधान में उल्लेखित समानता के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। मान लीजिए कि एक पूर्व सांसद चुनाव लड़ते हैं और हार जाते हैं, वहीं एक आम आदमी भी चुनाव लड़ता है और हार जाता है, लेकिन आम आदमी को कुछ नहीं मिलेगा जबकि पूर्व सांसद पेंशन का हकदार होगा। यह कैसी व्यवस्था है? इसलिए मेरा सुझाव है कि इस विधेयक में यह प्रस्ताव होना चाहिए कि सेवानिवृत्त होने पर ही पूर्व सांसदों को पेंशन मिलनी चाहिए। महाशय, हमलोग आम लोगों के लिए कुछ करने की जगह अपने लिए सुविधाएं बढ़ाने में लगे हुए हैं। इसलिए मैं इस प्रस्ताव का विरोध करता हूं।
‘लोकपाल बिल नहीं ला पाने को सदन की नाकामी बताया था
कॉमरेड राय ने लोकपाल बिल नहीं ला पाने को संसद की सबसे बड़ी नाकामी बतायी थी। बात 1991 की है। संसद में उन्होंने कहा था, ‘भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए काफी अर्से से लंबित लोकपाल विधेयक को अब तक सदन में सदन में लाने में हम नाकामयाब रहे हैं। हम युवाओं के लिए बेहतर रोजगार मुहैया कराने में अब तक कामयाब नहीं हुए हैं। हम अब तक विधायिका के माध्यम से मजदूरों के लिए प्रबंधन कमेटी में जगह बनाने में भी कामयाब नहीं हुए हैं। हमलोगों ने बजट के माध्यम से किसानों को मिलने वाली सब्सिडी को वापस ले लिया है। इन मामलों में हम सभी क्षेत्रों में नाकामयाब रहे हैं। हम जनता की कोई सेवा नहीं कर रहे हैं। आज यह सदन एक भटकाव की ओर अग्रसर है और हम इस सदन में अपने लिए सुविधाएं बढ़ाने में लगे हुए हैं।
‘शूटर ने भी नहीं चलाई गोली, मांगी माफी
एक बार कुख्यात शूटर बिंदु सिंह ने भी उनकी सादगी देख उनकी हत्या का इरादा त्याग दिया। किसी ने शार्प शूटर बिंदु सिंह को एके राय की हत्या की सुपारी दी थी। इसके बाद अपराधी राय दा को मारने के लिए सुबह-सुबह उनके पुराना बाजार टेंपल रोड स्थित कार्यालय पहुंचा और उनके निकलने का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद राय दा झाड़ू लगाते हुए बाहर निकले। बिंदु ने पिस्टल सटाकर उनसे पूछा कि एके राय कौन है। उन्होंने बड़ी सहजता से कहा, मैं ही हूं। इस पर बिंदु को विश्वास ही नहीं हुआ। उसे लगा कि इस आदमी को मारने से क्या फायदा? बाद में पूरी जानकारी मिलने के बाद उसने उनसे माफी मांगी।
ईमानदारी और सादगी की प्रतिमूर्ति थे राय दा
राजनीति में ईमानदारी और सादगी की प्रतिमूर्ति थे राय दा। राय दा ने अपनी जिंदगी में हर उन सुविधाओं का त्याग किया, जिससे देश की गरीब जनता वंचित है। तीन-तीन बार विधायक और तीन-तीन बार सांसद रहने के बावजूद उन्होंने एक साइकिल तक नहीं खरीदी। कोई घर नहीं। हाथ में पंखा लिए हुए जमीन पर चटाई बिछा कर सोना। घर-ऑफिस में कहीं भी बिजली से चलने वाला पंखा नहीं। कपड़े भी खुद धोना। कभी कोई सुरक्षाकर्मी और अंगरक्षक नहीं। विधायक-सांसद रहते हुए हमेशा आम जनता की तरह बस, टेंपो, ट्रेकर में सफर किया। किसी कैडर की बाइक से घुमे। बतौर सांसद नई दिल्ली के लिए ट्रेन से स्लीपर क्लास में सफर किया।
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